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शंकराचार्य जयंती 2021: 17 मई शंकराचार्य जयंती, शंकर से आदि गुरु शंकराचार्य बनने की कहानी

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शंकराचार्य जयंती 2021: आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) की जयंती 17 मई, सोमवार को है। गुरु शंकराचार्य का जन्म वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था। दक्षिण भारत के केरल राज्य में नम्बूदरी ब्राह्राण के यहां आदिगुरु शंकराचार्य का जन्म व जन्म के कुछ वर्षों बाद ही आदिगुरु के पिता का निधन हो गया। माना जाता है की बहुत ही अल्पआयु में वेदों को कंठस्थ कर गुरु शंकराचार्य ने महारथ हासिल कर ली थी।

हिंदू धर्म की ध्वजा देश के चारों कोनों में फहराने वाले व भगवान शिव के अवतार आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने वैशाख शुक्ल पंचमी को जन्म लिया था। आदि शंकराचार्य- 1200 वर्ष पूर्व कोचीन से 5-6 मील दूर कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले शंकराचार्य का जन्म हुआ था।

ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल वर्तमान में इसी कुल के ब्राह्मण होते हैं। बचपन में ही आदि शंकराचार्य बहुत प्रतिभाशाली बालक थे।

आदि शंकराचार्य के जन्म से जुड़ी कथा

कोई संतान ब्राह्राण दंपति के विवाह होने के कई साल बाद भी न हीं हुई। भगवान शंकर की ब्राह्राण दंपति ने संतान प्राप्ति के लिए आराधना की। ब्राह्राण दंपति की कठिन तपस्या से खुश होकर सपने में भगवान शिव ने उनको दर्शन दिए व वरदान मांगने को कहा।

इसके पश्चात भगवान शिव से ऐसी संतान की कामना ब्राह्राण दंपति ने की जो दीर्घायु भी हो व उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शंकर ने कहा संतान तुम्हारी दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ। लेकिन जो दीर्घायु होगा वह सर्वज्ञ नहीं होगा। और यदि आप सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु (longevity) नहीं होगी। तब भगवान शंकर से ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ (omniscient) संतान का वरदान माँगा ।

संतान रूप में महादेव ने वरदान देने के पश्चात ब्राह्राण दंपति के यहां जन्म लिया। ब्राह्राण दंपति ने वरदान के कारण पुत्र का नाम शंकर रखा। बचपन से गुरु शंकराचार्य प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब गुरु शंकराचार्य तीन साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया। मलयालम का ज्ञान तीन साल की उम्र में ही प्राप्त कर लिया था।

कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान

वेदों का पूरा ज्ञान गुरु शंकराचार्य को कम उम्र में हो गया था। व शास्त्रों का अध्ययन 12 वर्ष की उम्र में कर लिया था। 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना 16 साल की अवस्था में कर चुके थे। माता की आज्ञा से बाद में गुरु शंकराचार्य ने वैराग्य धारण कर लिया था। केदारनाथ में उन्होंने मात्र 32 साल की उम्र में समाधि ले ली। देश के चारों कोनों में आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए मठों की स्थापना की थी। जिसे आज शंकराचार्य पीठ के नाम से जाना जाता है।

 

 

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