Dwijapriya Sankashti Chaturthi Kab Hai 2022: इस बार फाल्गुन मास की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी रविवार को पड़ रहा है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गौरी-गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है।
Dwijapriya Sankashti Chaturthi Kab Hai 2022: गणेश चतुर्थी का पर्व हर माह की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता गणेश की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार फाल्गुन मास की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी रविवार को पड़ रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गौरी-गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व।
तिथि और शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि (Chaturthi Tithi) शुरू: 19 फरवरी, शनिवार, रात 9:56 बजे
चतुर्थी तिथि (Chaturthi Tithi) समाप्त: 20 फरवरी रविवार, रात 9:05 बजे
चंद्रोदय का समय: रविवार 20 फरवरी रात 9:50 बजे
महत्व
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) का शास्त्रों में विशेष महत्व है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूरे विधि-विधान से गौरी गणेश की पूजा व व्रत किया जाता है। भगवान गणेश देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और सबसे पहले पूजे जाते हैं। इसलिए द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन श्री गणेश जी की माता गौरी सहित पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। और सभी कष्ट दूर होते हैं और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
पूजा विधि
- सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान गणेश की मूर्ति पूजा के लिए ईशान कोण में चौकी पर स्थापित करें।
- सबसे पहले चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछा दें।
- भगवान के समक्ष हाथ जोड़कर पूजा व व्रत का संकल्प लें।
- जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि गणेश जी को अर्पित करें।
- भगवान गजानंद से ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करें।
इसके बाद एक केले का पत्ता लें, उस पर रोली से चौक बनाएं। - चौक के सामने वाले भाग पर घी का दीपक रखें।
- संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम को चांद दिखने के बाद ही तोड़ा जाता है। चंद्रमा के उदय होने से पहले गणपति की पूजा करें।
- पूजा के पश्चात चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें व व्रत तोड़ें।
- पूजा समाप्त होने के बाद ही अन्न का दान करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें और भगवान से प्रार्थना भी करें।
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