Gudi Padwa 2022: भारत में कई तरह के धार्मिक पर्व और त्यौहार मनाये जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है गुड़ी पड़वा। तिथि के आधार पर गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा एक ऐसा त्योहार है। जिसकी शुरुआत से सनातन धर्म में कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार चैत्र नवरात्रि भी गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) के दिन से ही शुरू हो जाती हैं। इसे हिंदू नव वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। गुड़ी पड़वा को उगादी और संवत्सर पड़वो के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से दक्षिण भारत में इस त्योहार को उगादि के नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। इन राज्यों में लोग गुड़ी पड़वा को नए साल के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। तो आइए आज जानते हैं गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) यानी हिंदू नव वर्ष का महत्व और इसका पौराणिक इतिहास…
गुड़ी पड़वा का इतिहास
चैत्र मास के शुरू होते ही हिंदू नववर्ष यानी विक्रम संवत शुरू हो जाता है। वैसे तो हिंदू नव वर्ष बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। लेकिन कहा जाता है कि 2057 ईसा पूर्व के आसपास विश्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसे नए सिरे से स्थापित किया। जिसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस विक्रम संवत को पूर्व में भारतीय संवत का कैलेंडर भी कहा जाता था। लेकिन बाद में इसे इसे हिंदू संवत का कैलेंडर के रूप में प्रचारित किया गया।
आज भी इस हिंदू नव वर्ष को हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैसाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाड़ी, चेटीचंड ,चित्रैय, तिरूविजा, ये सभी तिथियां संवत्सर के आसपास आती हैं। हालांकि मूल रूप से इसे नव संवत्सर और विक्रम संवत कहा जाता है।
विक्रम संवत क्या है?
कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के समय में भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंदू पंचांग के आधार पर भारतीय कैलेंडर बनाई थी। इस कैलेंडर की शुरुआत हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मानी जाती है। इसे नव संवत्सर भी कहा जाता है। पांच प्रकार के संवत्सर सौर, चंद्रमा, नक्षत्र, सावन और अधिमास हैं। वहीं, ये सभी विक्रम संवत में शामिल हैं। विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसा पूर्व में हुई थी। इसकी शुरुआत करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे, इसलिए उनके नाम पर इस संवत का नाम है।
हिन्दू नव वर्ष यानि गुड़ी पड़वा से जुड़ी खास बातें
ब्रह्म पुराण के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम ने गुड़ी पड़वा के दिन ही बाली का वध किया था और दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसके बाद यहां के लोगों ने खुश होकर अपने घरों में विजय ध्वज फहराया, जिसे गुड़ी कहते हैं।
गुड़ी पड़वा कब है?
पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल शुक्रवार को 11 बजकर 53 मिनट से प्रारंभ हो रही है। यह तिथि अगले दिन 02 अप्रैल शनिवार को 11:58 बजे तक की है। ऐसे में इस साल 02 अप्रैल को गुड़ी पड़वा मनाया जाएगा।
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