Holika Dahan 2022: रंगों का त्योहार होली हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा के बाद मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार, होली को साल की शुरुआत के बाद पड़ने वाला पहला प्रमुख त्योहार कहा जाता है। होली के त्योहार की शुरुआत होलिका दहन से होती है, फिर अगले दिन रंगों और गुलाल से होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022 को है, उसके एक दिन बाद 18 मार्च को होली खेली जाएगी। लेकिन 17 मार्च को गोधूलि बेला में होलिका दहन नहीं हो पाएगा। होलिका दहन (Holika Dahan) भद्रा मुक्त हो, इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के बाद मध्य रात्रि में होगा। होलाष्टक 10 मार्च से शुरू हो चूका है। जो होलिका दहन तक चलेगा। इन आठ दिनों में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करना वर्जित है। शास्त्रों के अनुसार इन दिनों भगवान विष्णु की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ होता है। इस बार होलिका दहन पर भाद्र की छाया रहेगी, जिससे मध्य रात्रि को होलिका दहन होगा। आइए जानते हैं विस्तार से-
दोपहर 1 बजे तक रहेगी भद्रा
होलिका दहन के दिन भद्रा का साया रहेगा । 17 मार्च को दोपहर 01:30 बजे से मध्य रात्रि 01:13 बजे तक भद्रा रहेगी। चूंकि होलिका दहन भद्रा मुक्त होना चाहिए, इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के बाद मध्य रात्रि में होगा।
होलिका दहन भद्रा पुच्छ मुहूर्त में कर सकते हैं
चूंकि 18 मार्च को प्रदोष काल में पूर्णिमा तिथि नहीं है इसलिए शास्त्रों के अनुसार 17 मार्च को भाद्र पुच्छ मुहूर्त के दौरान रात 09:08 बजे से 10:20 बजे तक होलिका दहन किया जा सकता है।
भद्रा के क्यों नही करते (Holika Dahan) होलिका दहन
कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्रा काल में मांगलिक कार्य या त्योहार की शुरुआत या समाप्ति को अशुभ माना जाता है। इसलिए कोई भी व्यक्ति भद्रा काल की अशुभता को देखते हुए शुभ कार्य नहीं करता है। चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में गोचर करने पर भद्रा विष्टीकरण का योग बनता है। इस अवधि के दौरान भद्रा पृथ्वी लोक में निवास करती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन हैं। भद्रा को क्रोधी स्वभाव का माना जाता है और उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्माजी ने उन्हें समय की गणना में एक प्रमुख अंग विष्टीकरण में स्थान दिया। हिंदी पंचांग के पांच मुख्य अंग हैं – तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें करण की संख्या 11 होती है। 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम भाद्र है। ऐसा माना जाता है कि वह तीनों लोकों में भ्रमण करती हैं और इस कारण भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य या किसी भी प्रकार का त्योहार या उत्सव नहीं मनाया जाता है।
होलिका दहन पूजा
होलिका दहन की पूजा करने से पहले सबसे पहले स्नान करना जरूरी है। स्नान के बाद होलिका के पूजन स्थल पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं।
पूजा के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की मूर्ति बनाएं। वहीं पूजा की सामग्री के लिए रोली, फूल, फूलों की माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल नारियल, 5 से 7 प्रकार के अनाज और जल रखें।
इसके बाद इन सभी पूजन सामग्री से पूरे विधि विधान से पूजन करें। मिठाई और फल चढ़ाएं। पूजा के साथ-साथ विधि विधान से भगवान नरसिंह की पूजा करें और फिर सात बार होलिका की परिक्रमा करें।
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