Jivitputrika Vrat Niyam: हिंदी कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जितिया का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है। माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। माताएं अपने बच्चों की समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जितिया का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है, जिसके नियम पूरे 3 दिन तक चलते हैं। नहाय खाय से शुरू होकर व्रत और पारण के बाद जितिया का व्रत पूरा होता है। इस व्रत में माताएं अन्न और जल का त्याग कर संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख के लिए व्रत रखती हैं। जितिया में, प्रदोष काल के दौरान भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। इस बार जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 रविवार को रखा जाएगा। इस व्रत के दौरान कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं और कई नियमों का पालन करना होता है। इसलिए व्रत के दौरान सभी नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करें। इससे आपका व्रत सफल होगा। आइए जानते हैं व्रत के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
जितिया व्रत के दौरान बरतें ये 5 सावधानियां | Jivitputrika Vrat Niyam
छठ के व्रत की तरह ही जितिया व्रत से एक दिन पूर्व नहाय-खाय किया जाता है।इसमें व्रती स्नानादि और पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करती है और अगले दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इसलिए नियमानुसार नहाय-खाय के दिन भी लहसुन-प्याज, मांसाहारी या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
अगर आपने जितिया का व्रत शुरू किया है तो इसे हर साल रखना चाहिए। यह व्रत बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले सास इस व्रत को रखती हैं। उसके बाद यह व्रत घर की बहू करती है।
अन्य व्रतों की तरह जितिया के व्रत में भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। साथ ही मन में किसी भी प्रकार का बैरभाव नहीं रखना चाहिए। इस दौरान लड़ाई-झगड़े से भी दूर रहना चाहिए।
जितिया का व्रत के दौरान आचमन करना भी वर्जित माना जाता है। सलिए जितिया व्रत के दौरान पानी की एक बूंद भी न लें।
जितिया व्रत के नियम पूरे तीन दिनों के लिए होते हैं। पहले दिन नहाय-खाय और दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इसलिए तीसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर पूजा-अर्चना कर व्रत का पारण करें।
पूजा विधि
प्रदोष काल में पूजा स्थल को गोबर से लीपकर स्वच्छ करें और छोटा सा तालाब बनाएं।
जितिया में शालिवाहन राजा के पुत्र, धर्मात्मा जीमूतवाहन की पूजा करें।
जिमुतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति को पानी या मिट्टी के बर्तन में स्थापित करें और उन्हें पीले और लाल रंग के रुई से सजाएं।
धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला से उनकी पूजा करें।
इसके बाद महिलाएं संतान की लंबी उम्र और प्रगति के लिए पूजा करती हैं।
पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका की व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।
इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
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