Lathmar Holi Kab Hai 2022: कई तरह के त्योहार हिंदू धर्म (Hindu Dharm) में मनाए जाते हैं। हिंदी पंचांग के मुताबिक 17 फरवरी से फाल्गुन मास की शुरुआत हो चुकी है। फाल्गुन मास में कई बड़े व्रत और पर्व होते हैं। कुछ ही दिनों में होली का त्योहार आ जाता है। जिसे लेकर पूरे देश में खासा उत्साह रहता है। वैसे तो होली का त्योहार मुख्य रूप से रंगों का त्योहार है। इस दिन हिंदू धर्म के लोग एकजुट होकर खुशी मनाते हैं और एक-दूसरे को प्यार के रंग में सराबोर कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। पर भारत (India) में एक जगह ऐसी भी है जहां रंगों की होली (Holi) बाद में खेली जाती है पहले खुशियों के नाम पर परुषों पर महिलाएं लाठी बरसाती हैं और हर कोई इस रस्म का पूरा आनंद लेता है। इसे लट्ठमार होली (Lathmar Holi) कहते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली पूरी दुनिया में मशहूर है। इस होली को राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ…
हर साल होली से कुछ दिन पहले मथुरा में लट्ठमार होली (Lathmar Holi) का आयोजन किया जाता है। इस बार 11 मार्च को लट्ठमार होली (Lathmar Holi) खेली जाएगी। कहा जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने राधारानी और गोपियों के साथ लट्ठमार होली खेलना शुरू किया था। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
ऐसे हुई थी शुरुआत
कहा जाता है कि द्वापरयुग में नंदगांव के नटखट कन्हैया (Kanhaiya) अपने सखाओं के संग राधा व अन्य गोपियों के साथ होली खेलने और उन्हें सताने के लिए बरसाना पहुंचते थे। राधा और उसकी सहेलियाँ कृष्ण और उनके सखाओं की हरकतों से परेशान हो जाती थीं और उन्हें सबक सिखाने के लिए उन पर लाठियाँ बरसाती थीं। वही उनके वार से बचने के लिए, कृष्ण और उनके सखाओं ने ढाल का इस्तेमाल किया। धीरे-धीरे उनका प्रेमपूर्वक होली खेलने का तरीका एक परंपरा बन गया। तब से आज तक इस परंपरा का पालन किया जा रहा है और हर साल बरसाना में बड़े स्तर पर लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है।
नंदगांव व बरसाना के लोगों के मध्य खेली जाती है लट्ठमार होली
लट्ठमार होली के दिन पूरे ब्रज में उत्साह देखने को मिलता है। नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं होली में भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। इस दौरान नंदगांव के लोग बरसाना की महिलाओं के साथ कमर पर फेंटा लेकर होली खेलने पहुंचते हैं। इस बीच बरसाना की महिलाएं उन पर लाठियों का इस्तेमाल करती हैं और पुरुष ढालों का उपयोग करके उनकी लाठी से बचने की कोशिश करते हैं। इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से लोग मथुरा आते हैं।
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