Navratri Mantra: इस साल शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर सोमवार से शुरू हो रहा है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के भक्त 9 दिनों तक व्रत रखते हैं, मां की पूजा करते हैं, और मंत्रों का जाप करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की विशेष पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। नवरात्रि के हर दिन देवी की पूजा, आराधना और मंत्र जाप का विधान है।
Navratri Mantra: अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ ही देवी के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री की पूजा से शक्ति मिलती है, देवी के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी की पूजा से सम्मान मिलता है, देवी चंद्रघंटा की पूजा से एकाग्रता, स्कंदमाता की पूजा से सफलता मिलती है, माता कात्यायनी की पूजा से बाधाएं दूर होती हैं, कालरात्रि की पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, महागौरी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और मां सिद्धिदात्री की पूजा से जीवन की हर मनोकामना पूरी होती है।
नवरात्रि के 9 दिन और देवी के 9 रूप
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेती कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
शारदीय नवरात्रि के दिन | देवी | बीज मंत्र |
पहला दिन | शैलपुत्री | ह्रीं शिवायै नम:। |
दूसरा दिन | ब्रह्मचारिणी | ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। |
तीसरा दिन | चन्द्रघण्टा | ऐं श्रीं शक्तयै नम:। |
चौथा दिन | कूष्मांडा | ऐं ह्री देव्यै नम:। |
पांचवा दिन | स्कंदमाता | ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:। |
छठा दिन | कात्यायनी | क्लीं श्री त्रिनेत्राय नम:। |
सातवाँ दिन | कालरात्रि | क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। |
आठवां दिन | महागौरी | श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। |
नौवां दिन | सिद्धिदात्री | ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। |
1.प्रथम मां शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
2. द्वितीय माँ ब्रह्मचारिणी
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
3. तृतीय माँ चंद्रघंटा-
पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।
4. चतुर्थ माँ कुष्मांडा-
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
5. पंचम मां स्कंदमाता-
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥