पीपल का महत्व (Peepal Ka Mahtav) – शनि देव की पीड़ा को शांत करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा करने की विधि भी बताई गई है। पीपल के पेड़ की पूजा करने और परिक्रमा करने से शनि की साढ़े साती या ढैय्या की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती है। वहीं पीपल का पेड़ लगाने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
पदमपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का ही रूप है, इसलिए इस वृक्ष को धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठदेव वृक्ष की उपाधि मिली और इसकी औपचारिक पूजा शुरू हुई। पद्म पुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से मनुष्य की आयु लंबी होती है और जो व्यक्ति इसके वृक्ष को जल समर्पित करता है, वह अपने सभी पापों को समाप्त करके स्वर्ग को प्राप्त करता है। शनि देव की पीड़ा को शांत करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा करने की विधि भी बताई गई है।
पीपल में त्रिदेव का वास –
भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं ‘मैं सभी वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं’, इस कथन में उन्होंने स्वयं को पीपल के वृक्ष के समान घोषित किया है। पीपल एक ऐसा वृक्ष है जिसमें त्रिदेवों का वास होता है। जिसकी जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर और अग्रभाग में ब्रह्माजी का वास है। इस भूतल पर स्वयं श्रीहरि अश्वत्थ वृक्ष के रूप में निवास करते हैं। जिस प्रकार संसार में ब्राह्मण, गाय और देवता पूजनीय हैं, उसी प्रकार पीपल के वृक्ष को भी अत्यंत पूजनीय माना गया है। पीपल को लगाना, रक्षा करना, स्पर्श करना और पूजन करने से क्रमशः धन, उत्तम संतान, स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा पीपल में पूर्वजों का वास माना जाता है, इसमें सभी तीर्थों का वास होता है, इसलिए पीपल के नीचे मुंडन आदि संस्कार करने का विधान है। यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराण कथा आदि के लिए पीपल की छाया सर्वोत्तम मानी गई है। शुभ कार्यों में इसके पत्तों की वंदनवार द्वार पर लगाई जाती है।
शनि की शुभता के लिए पीपल के वृक्ष की पूजा
ज्योतिष की दृष्टि से पीपल का संबंध शनि ग्रह से माना गया है। शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से कई तरह के संकट दूर होते हैं। पीपल के पेड़ की पूजा करने परिक्रमा करने से शनि की साढ़े साती या ढैय्या की पीड़ा नहीं होती है। वहीं पीपल का पेड़ लगाने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
पीपल को मिला शनिदेव जी का वरदान
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि अगस्त्य अपने शिष्यों के साथ दक्षिण दिशा में गोमती नदी के तट पर गए और एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे। उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का शासन था। कैटभ नाम का एक राक्षस पीपल का रूप धारण कर यज्ञ में ब्राह्मणों को परेशान करने लगा और ब्राह्मणों को मारकर खा जाता था। जैसे ही कोई ब्राह्मण पीपल के पेड़ की टहनियाँ या पत्ते तोड़ने जाता, राक्षस उन्हें खा जाता। इनकी संख्या लगातार घटती देख ऋषि मुनि मदद के लिए शनिदेव के पास गए। इसके बाद शनिदेव ब्राह्मण का रूप धारण कर पीपल के पेड़ के पास चले गए। उधर पेड़ बने दैत्य ने शनिदेव को साधारण ब्राह्मण समझकर खा लिया। इसके बाद शनिदेव उनका पेट चीर कर बाहर निकले और उस राक्षस का अंत किया। दैत्य के अंत से प्रसन्न होकर ऋषियों ने शनिदेव की जय-जयकार करते हुए बहुत धन्यवाद दिया। शनिदेव भी प्रसन्न हुए और कहा कि जो कोई भी व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के पेड़ का स्पर्श करेगा या उसकी पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। दूसरी ओर जो कोई भी इस वृक्ष के पास स्नान, ध्यान, हवन और पूजा करेगा, उसे कभी भी मेरी पीड़ा सहन नहीं करनी पड़ेगी।