Pind Daan: सनातन हिंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है। यह पक्ष पितरों को समर्पित माना जाता है। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन पितृ, पितृलोक से मृत्यु लोक में अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने आते हैं और हम उनके सम्मान में अपनी सामर्थ्यनुसार उनका स्वागत-सत्कार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सभी पूर्वज अपनी पसंद का भोजन और सम्मान पाकर खुश होते हैं और अगर उन्हें संतुष्टि मिलती है तो वे परिवार के सदस्यों को दीर्घायु, पारिवारिक वृद्धि और कई तरह के आशीर्वाद देकर पितृलोक में लौट जाते हैं। इस वर्ष पितरों के श्राद्ध कर्म 10 सितंबर से 25 सितंबर तक रहेंगे। श्राद्ध पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है। क्या महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं? हां, लेकिन कुछ नियमों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को श्राद्ध करना चाहिए। आइए जानते हैं क्या है वह नियम।
महिलाएं कर सकती हैं पिंडदान
गरुड़ पुराण के अनुसार महिलाएं पिंडदान (Pind Daan) भी कर सकती हैं। लेकिन इसके कुछ नियम हैं। आइए जानते हैं क्या हैं वो नियम –
यदि किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो परिवार की महिलाएं यानी बेटी, पत्नी और बहू अपने पिता का श्राद्ध और पिंड दान कर सकती हैं।
गरुड़ पुराण की मान्यता के अनुसार यदि कोई पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध करती है तो पुत्र न होने पर भी पिता उसे स्वीकार कर आशीर्वाद देता है।
यदि किसी के परिवार में श्राद्ध के समय पुरुष अनुपष्ठी हैं है तो ऐसी स्थिति में महिलाएं पिंडदान कर सकती हैं।
कुछ धार्मिक ग्रंथ जैसे धर्मसिंधु ग्रंथ, मनुस्मृति, वायु पुराण, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार बताया गया है।
वाल्मीकि रामायण में भी सीता जी ने राजा दशरथ का पिंड दान किया था।
इन बातों का रखें ध्यान
श्राद्ध करते समय महिलाओं को सफेद और पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार श्राद्ध केवल विवाहित महिलाओं को ही करना चाहिए।
तर्पण करते समय महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे कुश, जल और काले तिल डालकर तर्पण नहीं कर सकतीं।
यदि श्राद्ध तिथि का स्मरण न हो तो नवमी के दिन वृद्धों और स्त्रियों का तथा पंचमी को संतान का श्राद्ध करें।
पुत्र न हो तो श्राद्ध कौन कर सकता है?
अगर कोई पुत्र नहीं है और किसी ने बच्चा (बेटा या बेटी) गोद लिया है, तो वह श्राद्ध कर सकता है।
पुत्र न होने पर ही पति अपनी पत्नी का श्राद्ध कर सकता है।
यदि पुत्र, पौत्र या पुत्री के पुत्र न हो तो भतीजा या भतीजी भी श्राद्ध कर सकते हैं।
यदि मृत व्यक्ति का कोई पुत्र-पुत्री नहीं है और पत्नी की भी मृत्यु हो गई है, तो ऐसी स्थिति में भाई, पोते, नाती, भांजे या भतीजे भी श्राद्ध करने के हकदार होते हैं।
यदि परिवार में कोई नहीं है, तो केवल शिष्य, मित्र, रिश्तेदार या परिवार के पुजारी ही श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई भी पुरुष या महिला हो सकती है।
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