Shani Jayanti Kab Hai 2022: हर साल ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। इस बार शनि जयंती 30 मई सोमवार को है। ज्योतिष की गणना के आधार पर शनि ग्रह का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की महादशा, साढ़े साती और ढैय्या बहुत कष्टदायक होती है। शनि देव सूर्यदेव के पुत्र हैं लेकिन पिता और पुत्र के बीच हमेशा शत्रुता बनी रहती है। शनि सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है, यह लगभग ढाई साल तक किसी एक राशि में रहता है। जब शनि किसी एक राशि में गोचर करता है, तो शनि साढ़े तीन राशियों पर दो पर ढैय्या चलती है। 30 साल बाद शनि फिर उसी राशि में आते है। ज्योतिष और आस्था की दृष्टि से शनि का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं शनि जयंती (Shani Jayanti) के शुभ अवसर पर शनि देव से जुड़ी 10 खास बातें।
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह (Shani Grah) में तमोगुण प्रधान माने जाते हैं। शनि ग्रह को क्रूर ग्रह और दुख का कारक भी बताया गया है। वह देवताओं, राक्षसों और मनुष्यों को को त्रास देने में सक्षम है, शायद इसीलिए उन्हें देने वाला ग्रह माना जाता है। लेकिन वास्तव में शनि देव न्याय के देवता हैं। मनुष्य के दुख का कारण उसके अपने कर्म होते हैं। एक निष्पक्ष न्यायाधीश की तरह शनि पाप कर्मों के आधार पर वर्तमान जन्म में दंड भोग का प्रावधान करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पुत्र की लालसा में शनिदेव की पत्नी उनके पास पहुंची, लेकिन शनिदेव कठोर तपस्या में लीन थे। इससे आहत होकर पत्नी ने शनि देव को श्राप दिया की जिस पर भी आपकी दृष्टि पड़ेगी उसका सबकुछ नष्ट हो जाएगा।कहा जाता है कि शनि की दृष्टि उनकी पत्नी द्वारा दिए गए श्राप के कारण ही है।
12 साल तक के बच्चों पर शनि का प्रकोप नहीं होता है। इसके पीछे का कारण पिप्पलाद और शनि का युद्ध है। पिप्पलाद ने शनि को युद्ध में पराजित किया और उन्हें इस शर्त पर छोड़ दिया कि वह 12 वर्ष की आयु तक के बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं देंगे ।
शनि देव के पिता सूर्य और माता छाया हैं। ऐसा कहा जाता है कि छाया भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी और वह अपने गर्भ में शनि की चिंता किए बिना हमेशा भगवान शिव की तपस्या में लीन रहती थी। इस वजह से वह न तो अपना और न ही गर्भ में अपने बच्चे की देखभाल कर पा रही थी। जिससे शनि काले और कुपोषित पैदा हुए।
पूजा में कभी भी शनि देव की आंखों में आंख डालकर नहीं देखना चाहिए। बल्कि पैरों की ओर देखना चाहिए। शनि देव की आंखों को देखने से शनि संकट का खतरा बढ़ जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव और भगवान शिव के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। एक भयानक युद्ध के बाद भगवान शिव ने शनि देव को हरा दिया। बाद में, सूर्यदेव के अनुरोध पर, भगवान शिव ने उन्हें माफ कर दिया और शनि के युद्ध कौशल से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपना सेवक और दण्डाधिकारी नियुक्त किया।
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