Vidur Niti: महाभारत में, विदुर कौरवों और पांडवों के काका थे। लेकिन उन्होंने युद्ध में किसी की ओर से नहीं लड़ने का फैसला किया। महात्मा विदुर बहुत ही ज्ञानी और दूरदर्शी थे। उन्होंने पहले ही बता दिया था कि महाभारत के युद्ध का परिणाम बहुत घातक होगा। विदुर जी द्वारा कही गई बातें आज भी विदुर नीति (Vidur Niti) के रूप में प्रचलित हैं। विदुर जी की शिक्षाओं का आज भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। विदुर जी ने चार ऐसे भावों के बारे में बताया है। जिनसे व्यक्ति कभी न कभी अपने जीवन में अवश्य फंसता है। यदि वह समय रहते इन भावनाओं पर काबू पा लेता है। तो वह बुद्धिमान कहलाता है। नहीं तो मनुष्य इन भावनाओं के भंवर में फँसकर अपना जीवन बर्बाद कर लेता है।
क्रोध
आचार्य विदुर स्वयं भी बहुत सरल और शांत स्वभाव के थे। विदुर नीति के अनुसार क्रोध की भावना पर नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को सही और गलत का कोई बोध नहीं होता है। क्रोध मनुष्य की बुद्धि का सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध में व्यक्ति दूसरों के साथ-साथ अपना भी नुकसान करता है। इसलिए इससे बचना चाहिए।
उत्साह
आचार्य विदुर के अनुसार अत्यधिक उत्साह मनुष्य के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है। अत्यधिक आनंद की स्थिति में भी व्यक्ति को स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसे समय में व्यक्ति अपनी भावनाओं के कारण अपना मानसिक संतुलन खो देता है। अत्यधिक आनंद में लिया गया निर्णय आपका जीवन भी बर्बाद कर सकता है।
विनय
यहाँ इसका अर्थ चापलूसी से लिया गया है। जातक के लिए यह भाव बहुत ही हानिकारक सिद्ध होता है। कभी किसी की चापलूसी में मनुष्य को नहीं फंसना चाहिए।
स्वयं के पूज्य समझने का भाव
महात्मा विदुर कहते हैं कि खुद के पूज्य का भाव भी मनुष्य के मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है। स्वयं को पूज्य मतलब सबसे ऊपर समझने के भाव व्यक्ति में अहंकार को जन्म देता है। और अहंकार से व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
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